भारत की नदियाँ न केवल जीवनदायिनी हैं, बल्कि देश की सांस्कृतिक धारा का भी एक अहम हिस्सा रही हैं। इन नदियों के किनारे बसी बस्तियाँ, उनका आस्थाओं से गहरा नाता और जीवन के विभिन्न पहलुओं में उनका योगदान, सभी कुछ भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। गोमती नदी, जो उत्तर प्रदेश के कई शहरों के लिए जीवन की धारा का काम करती है, इसी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है।
लेकिन, जैसे-जैसे समय बीत रहा है, इस नदी को विभिन्न पर्यावरणीय और मानवीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह संकट सिर्फ गोमती के लिए नहीं, बल्कि इसके साथ जुड़े लाखों जीव-जंतुओं और मानव जीवन के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। बदलते पर्यावरणीय परिदृश्य और बढ़ते मानवीय हस्तक्षेपों ने इस पवित्र नदी की जैव विविधता को बुरी तरह प्रभावित किया है। यह केवल नदी का मामला नहीं है, बल्कि इसके साथ जुड़े लाखों जीव-जंतुओं और मानव जीवन का भी है।
प्रदूषण का बढ़ता संकट और विलुप्त होती जैव विविधता
गोमती नदी, जो कभी जीवनदायिनी और प्राकृतिक सम्पदा के रूप में प्रतिष्ठित थी, आज प्रदूषण के बढ़ते काले साए में दबती जा रही है। गंदे नालों का गिरना और औद्योगिक अपशिष्टों का निरंतर प्रवाह, इस पवित्र नदी के पानी को विषाक्त बना रहे हैं। शुगर मिलों और नगरीय क्षेत्रों का कचरा नदी में बहकर इसे और भी ज्यादा जहरीला बना रहा है। चौंकाने वाले आंकड़े बताते हैं कि जहां पहले गोमती के पानी में प्रति लीटर 7-8 मिलीग्राम ऑक्सिजन होती थी, वहीं अब यह स्तर घटकर महज 3-4 मिलीग्राम तक रह गया है। यह कमी जलचरों, खासकर मछलियों के जीवन के लिए एक गंभीर संकट पैदा कर रही है। प्रदूषण की यह सीमा अब नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को संकट में डाल चुकी है, और यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो हम इसके सांस्कृतिक और जैविक खजाने को हमेशा के लिए खो सकते हैं।
मछलियों की प्रजाति पर मंडराता खतरा
कभी गोमती में मछलियों की 56 प्रजातियां पाई जाती थीं। अब यह संख्या घटकर मात्र 15-20 रह गई है। कई लोकप्रिय प्रजातियां जैसे रोहू, जलकापुर, कतला और दरियाई टेंगरा यहां से पूरी तरह लुप्त हो चुकी हैं। गोमती का यह बदलाव केवल एक संकेत नहीं, बल्कि आने वाले बड़े संकट की चेतावनी है।
क्या कहता है जूलॉजी विभाग का शोध
लखनऊ विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के शोध ने स्थिति की गंभीरता को और स्पष्ट किया है। विभिन्न स्थानों से लिए गए नमूनों ने दिखाया कि नदी में ऑक्सिजन स्तर और पानी की गुणवत्ता कितनी गिर चुकी है। यह स्थिति मछलियों के लिए असहनीय हो चुकी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इसे तत्काल रोका नहीं गया, तो गोमती की जैव विविधता का लगभग पूरी तरह सफाया हो सकता है।
छठ पूजा पर हुई सफाई में उजागर सच्चाई
हाल ही में छठ पूजा के दौरान नगर निगम ने गोमती की सफाई करवाई, तो नदी के तल में बड़ी संख्या में मरी हुई मछलियां मिलीं। सफाई के दौरान निकला कचरा और मृत मछलियों का अंबार, स्थिति की गंभीरता का प्रमाण था। यह एक ऐसा दृश्य था, जिसने न केवल प्रशासन, बल्कि आम नागरिकों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया।
मछुआरों की पीड़ा
गोमती पर आश्रित मछुआरों का जीवन भी इस संकट से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कुछ अनुभवी गोताखोर बताते हैं कि अब उन्हें पहले की तरह बड़ी मछलियां नहीं मिलतीं। उनके अनुसार, "पहले बिलगागर और टेंगन जैसी मछलियां आसानी से पकड़ी जाती थीं, लेकिन अब ये नाम मात्र को भी नहीं मिलतीं।"
कारण और समाधान की ओर पहल
गोमती के संकट के पीछे मुख्य कारण है—सीधे गिरते नाले, शुगर मिलों का जहरीला अपशिष्ट और कचरे का ढेर। अगर इस स्थिति को बदलना है, तो निम्नलिखित कदम तत्काल उठाए जाने चाहिए:
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण: गोमती में गिरने वाले गंदे नालों को सीधे नदी में गिरने से रोकना होगा। इसके लिए हर शहर में आधुनिक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाने चाहिए।
- औद्योगिक अपशिष्ट पर नियंत्रण: शुगर मिलों और अन्य औद्योगिक इकाइयों द्वारा छोड़े जा रहे जहरीले कचरे की सख्ती से निगरानी की जानी चाहिए।
- नदी सफाई अभियानों को प्राथमिकता: केवल त्योहारों के समय सफाई से समस्या का हल नहीं होगा। यह प्रक्रिया नियमित रूप से होनी चाहिए।
- जागरूकता अभियान: स्थानीय निवासियों को गोमती के महत्व और प्रदूषण की रोकथाम में उनकी भूमिका के प्रति जागरूक करना जरूरी है।
गोमती केवल एक नदी नहीं है; यह हमारे सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसे बचाना केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का दायित्व है। अगर समय रहते हम जागरूक नहीं हुए, तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।
गोमती को बचाना, हमारी जिम्मेदारी है। यह प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य का प्रतीक है, और इसे संरक्षित करना हमारे अस्तित्व के लिए अनिवार्य है।