गोमती नदी पवित्र एवं प्राचीन भारतीय
नदियों में से एक है. उत्तर प्रदेश में प्रवाहित गोमती पीलीभीत, माधोटांडा के गोमत ताल से उद्गमित होकर
लगभग 960 किमी का लम्बा सफ़र तय करते हुए
अनंतोग्त्वा वाराणसी के कैथ क्षेत्र में मार्कंडेय महादेव मंदिर के सामने माँ गंगा
की गोद में विश्राम प्राप्त करती है. गोमती का पौराणिक, सांस्कृतिक व आर्थिक महत्त्व किसी
प्रकार के परिचय का मोहताज नहीं है.
गंगा-जमुनी तहज़ीब की साक्षात् गवाह, अवध की मीठी सी अदा से लबरेज बलखाती
गोमती बनाम "आदिगंगा" आज अपनी उपनदियों के माध्यम से उत्तर प्रदेश के
तकरीबन 15 शहरों के लिए महत्त्वपूर्ण बनी हुई है.
यह तकरीबन 7500 वर्ग मीटर क्षेत्र के
निवासियों की पेयजल सम्बंधी आवश्यकताओं की आपूर्ति तथा कृषि में योगदान देकर अपनी
अहम भूमिका नामांकित करा रही है.
गोमती नदी के किनारों पर विविध जैव
वनस्पतियों और जीव जंतुओं का विकास हुआ है. इस ऐतिहासिक नदी के तटों पर अनेकों
सुरुचिपूर्ण परिदृश्य स्थल भी हैं और इन पर कई महान कला संस्कृतियों के उद्भव की गौरव गाथा भी लिखी गयी
है. परन्तु विगत कुछ दशकों में
गोमती नदी के दो-तिहाई जल की बर्बादी सिर्फ इसलिए हो गयी क्योंकि इसके जलागम
क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) और इसकी 22 सहायक नदियों के प्रबंधन में लापरवाही बरती गयी.
आज गोमती अत्यंत प्रदूषित परिस्थिति में
है और इसका संकुचन तीव्रता से हो रहा है जो शोचनीय है. उत्तर प्रदेश प्रदूषण बोर्ड
के अनुसार गोमती का डाउनस्ट्रीम जल तय मानकों से कही अधिक प्रदूषित हो चूका है.
केवल यही नहीं तकरीबन 26 नालों से गिरता असंशोधित सीवरेज, चीनी मिलें, कृषि से निकलते खतरनाक रसायन, चमडा कारखानों का अपशिष्ट, घरेलू कचरा इत्यादि का डंपिंग ग्राउंड
बन चुकी गोमती सरकार की रिवरफ्रंट जैसी अत्याधुनिक योजनाओं की भेंट चढ़कर अपने
पुरातन स्वरुप से वंचित हो गयी है.
गोमती के ऊपर बनने वाला रिवरफ्रंट जो
पूरे लखनऊ का आकर्षण होने वाला था. रिवरफ्रंट के नाम पर जहां सौंदर्यीकरण होना था, जिस नदी को साफ और सुथरा करके पर्यटन
स्थल के तौर पर विकसित करने का प्लान था, वह वर्तमान में इतने करोड़ों खर्च किए जाने के बाद भी यूं ही गंदगी
से भरी पड़ी हुई है और मृत अवस्था में कराह रही है. रिवरफ्रंट के नाम पर गोमती के
दोनों ओर दीवार खड़ी कर दी गई जिससे भूजल स्त्रोतों से नदी का संबन्ध ना के बराबर
रह गया, नदी किनारे लगे वृक्ष विकास के नाम पर
काट डाले गए जिससे प्रदूषण का स्तर और अधिक हो गया.
गोमती नदी के अंतर्गत आने वाले अभियान सरकारी व गैर सरकारी पर्यावरण प्रेमियों द्वारा संचालित है, अधिक जानकारी के लिए या अपनी रिसर्च यहाँ प्रकाशित करने के लिए गोमती संरक्षक मंडल से जुड़े रहें.
वी. के. जोशी जी देश के प्रमुख पर्यावरणविद एवं नदी संरक्षक हैं, उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा नदियों के नवनिर्माण के लिए समर्पित किया है.
वेंकटेश जी भारत में पर्यावरण विज्ञान के वरिष्ठ शोधकर्ता हैं, जो देश में पर्यावरण, सामाजिक और कृषि संबंधित नवविचारों की दिशा में कार्यरत हैं.
मनदीप सिंह एक सामाजिक कार्यकर्ता एवं पर्यावरणविद के तौर पर सेव गोमती अभियान से जुड़कर गोमती अविरलता एवं पर्यावरण संरक्षण की मुहिम चला रहे हैं.
रिनी जी एक अनुभवी हेल्थकेयर प्रोफेशनल हैं, जो बेलेट बॉक्स इंडिया में सीनियर निदेशक के रूप में कार्यरत हैं और दिल्ली व एनसीआर में विभिन्न एनजीओ के लिए कार्य कर ...