19 जून, 2017
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
जलीय जीवन के अस्तित्व पर मंडराते खतरे के रूप में जलकुम्भी एक प्रकार की खरपतवार है, जो जल में उत्पन्न होकर विभिन्न प्रजातियों के जीवन को संकट में डाल देती है. जिस प्रकार कृषि के दौरान अनचाहे व अनियंत्रित खरपतवारों से उपज की वृद्धि प्रभावित होती है, ठीक उसी प्रकार जलीय कुम्भी नदी के जल को कुपोषित करने के साथ साथ कईं जलचरों की साँसे भी अवरुद्ध कर देती है. जिससे या तो जलीय जीवन समाप्त हो जाता है अथवा पलायन कर जाता है. जलकुम्भी (Eichhornia Crassipes) मुख्यतः दक्षिण अमेरिका में जन्मी एक खरपतवार प्रजाति है, जो आज सम्पूर्ण विश्व की नदियों, झीलों, तालाबों इत्यादि को व्यापक स्तर पर प्रभावित कर रही है. यह फ्री-फ्लोटिंग जलीय मेक्रोफाइट है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आमतौर पर 0.5 से 1.5 मीटर तक बढ़ने की योग्यता रखता है. एक आक्रामक प्रजाति के रूप में यह केवल जलीय जीवन के लिए ही नहीं, अपितु सिंचाई व्यवस्था, सुचारू जल प्रवाह, जलविद्युत कार्यों आदि के लिए भी बाधा खड़ी करता है. वर्ष 1990 से चीन में जलकुम्भी को जल प्रदूषण का पर्याय माना जाता रहा है.
भारत में जलकुम्भी को "बंगाल का खौफ", "नीला दैत्य", "घातक प्रजाति" इत्यादि के नाम से जाना जाता है. देश की कईं नदियों के साथ साथ आज गोमती नदी को भी जगह जगह जलकुम्भी ने घेर लिया है. जलकुम्भी से जकड़ी गोमती नदी एक अप्राकृतिक पर्यावरण प्रणाली को दर्शाती है. नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि जलकुम्भी पानी में निरंतर स्थिरता या युट्रोफिकेशन के कारण बढती है. लखनऊ में गोमती के किनारों पर अधिक कृषि नहीं की जाती, इसलिए जल के ठहराव के कारण ही गोमती में जलकुम्भी को पनपने का अवसर मिल रहा है.
एनबीआरआई के अनुसार, "अत्याधिक गर्मी के कारण गोमती का पानी वाष्पित हो जाता है, जिससे नदी सुख जाती है. सरकार द्वारा सिंचाई विभाग को आदेश मिला हुआ है कि प्रत्येक वर्ष अप्रैल और मई में गोमती में शारदा नहर से 100 क्यूसेक पानी छोड़ा जाए, परन्तु 2017 में बरेली में एक नहर पर रेलवे पुल के निर्माण के कारण अप्रैल में गोमती में छोड़े गये पानी को मिडवे में ही रोक देना पड़ा. जिससे गोमती अधिकांश सुखी रही और जहां जल का प्रवाह बाधित हुआ वहीं जलकुम्भी पैदा हो गयी."
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक ताजातरीन सर्वेक्षण की माने तो, पिछले काफी समय से गोमती के अधिकतर हिस्सों में यह जहरीली हरियाली दिखाई दे रही है. जिसके कारण नदी जल केमिस्ट्री को पूरी तरह परिवर्तित करके रख दिया है. रिवरफ्रंट के लिए चल रहे निर्माण कार्य से पक्का पुल से लेकर शहीद पथ तक के गोमती के 12 किमी के दायरे में तकरीबन 6 तालाब जैसी संरचनाएं बन गयी हैं, जिनमें जलशाक तैरती नजर आ रही है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी एंड रिसर्च (आईआईटीआर) के अनुसार, प्रदूषक और जलकुम्भी की उपस्थिति से ऑक्सीजन के स्तर में 30 से 40% की कमी हो सकती है.
आईआईटीआर के निदेशक आलोक धवन ने कहा, "एक स्वच्छ नदी में, घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर 12 से 15 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) होना चाहिए, परन्तु गोमती में, रिकॉर्ड किया गया ऑक्सीजन स्तर आम तौर पर 10 पीपीएम से कम पाया गया है. उनके अनुसार ऑक्सीजन का स्तर मौसम, प्रदूषक तत्त्वों एवं स्थान आदि से प्रभावित होता है."
निशांतगंज के पास गोमती नदी में प्रदूषण और अधिक बढ़ जाता है, जिससे वहां ऑक्सीजन स्तर 8 पीपीएम से भी कम पाया गया. कुड़ियाघाट के बाद से गोमती ने अपना प्राकृतिक स्वरुप खो दिया और यह छोटे छोटे तालाबों में विभक्त हो कर रह गईं, जिससे जलकुम्भी ने नदी जल में अपनी जगह बना ली. हालाँकि जलकुम्भी को हटाने के बहुत से प्रयास किये जा चुके है, परन्तु यह जल्द ही वापस अपनी जगह बना लेती है.
बीएमएयू के प्रो डॉ वेंकटेश दत्त ने अपनी टीम के साथ गोमती में जलकुम्भी से होने वाले प्रभावों पर गहन शोध किया, जिसके आधार पर निम्नलिखित निष्कर्ष निकला गया:-
1. जल कुम्भी जलीय पौधों तक सूरज की रौशनी व ऊष्मा को नहीं पहुंचने देती, जिससे प्रकाश संश्लेष्ण की प्रक्रिया बाधित हो जाती है और जलीय पौधे इसके अभाव में समाप्त हो जाते है. गोमती नदी में भी यह बहुतायत देखने को मिल रहा है.
2. नदी जल में मछलियों के रहने के लिए मानक स्तर के अनुसार 4 मिली ग्राम प्रति लीटर ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जो गोमती के जल में केवल 1.2 मिली ग्राम प्रति लीटर तक रह गया है. इस स्थिति ने मछलियों की संख्या पर अप्रत्याशित रूप से प्रभाव डाला है. वर्ष 2012 में गोमती में मछलियों की तकरीबन 15 प्रजाति थी, जिनमे से केवल 6 ही आज देखने को मिल रहीं हैं. डॉ वेंकटेश के अनुसार नदी जल के लिए बेहद उपयोगी मछलियां पबदा, रोहू, कातला आदि गायब हो चुकी है, जो सचमुच चिंता का विषय है.
3. असंशोधित सीवेज से नदी का जल बहुत अधिक प्रदूषित हुआ है, जिससे जलकुम्भी का प्रभाव और अधिक घातक हो गया है. प्रदूषित जल में जलकुम्भी अधिक तेजी से फैलती है, और साथ ही जलीय जीवन तथा आस पास की वनस्पतियों का जीवन भी संकट में डाल देती है.
4. कुड़ियाघाट पर बने अस्थायी बाँध के कारण नदी के अपस्ट्रीम पर प्रदूषित तत्त्वों में वृद्धि हुई है, जिससे जलकुम्भी आसानी से नदी में फैल गयी.
पहले से ही प्रदुषण की मार झेल रही गोमती के सीने पर फैली जलकुम्भी की परत नदी तंत्र के लिए विष का कार्य कर रही है. उपरी तौर पर हरीतिमा और ताजगी का एहसास दिलाती यह विषकर प्रजाति गोमती की शिथिलता में और अधिक बढ़ावा कर रही है. इसे रोकने के लिए अवश्य ही कुछ बेहतर तकनीकी उपायों की पहल करनी होगी. हर्बीसाइड्स तकनीक एवं कुछ जैव इन्सेक्टों का प्रयोग जलकुम्भी की वृद्धि पर रोक लगा सकता है, यदि उचित वैज्ञानिक माध्यम से इन तकनीकों का उपयोग किया जाये. इसके अतिरिक्त करपूरावली नामक पौधे के प्रयोग से भी जलकुम्भी को समाप्त किया जा सकता है, इसलिए इस प्रकार के पौधों के अधिक रोपण की आवश्यकता देश में बनी हुई है. साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर भी संयुक्त प्रयासों के माध्यम से जैसे साप्ताहिक नदी स्वच्छता अभियान इत्यादि के द्वारा भी जलकुम्भी को निकाला जा सकता है. इसके साथ साथ हाल ही में पुरा महादेव ग्राम से चलाये जा रहे "निर्मल हिंडन" अभियान की तर्ज पर गोमती से जलकुम्भी को निकाल कर उसे जैविक खाद के रूप में परिवर्तित करके इसके बहुत से लाभ उठाए जा सकते है.