जब हम एक स्वस्थ नदी तंत्र की बात करते है तो केवल एक नदी नहीं अपितु उससे जुड़ी तमाम उपनदियों, प्राकृतिक ड्रेनेजों आदि पर भी हमारा ध्यान दृष्टिगोचर होता है. किसी भी नदी को फलने फूलने में उसकी सहायक नदियों द्वारा योगदान महत्त्वपूर्ण होता है. शायद इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए सहायक नदियों को "धरती की धमनियों" के रूप में अंकित किया गया है. जिस प्रकार एक मनुष्य शरीर में स्वस्थ हृदय के लिए सभी रक्त वाहिकाओं के सुगम संचालन की जरूरत होती है ठीक उसी प्रकार किसी मुख्य नदी के सकुशल संचलन के लिए भी उसकी उपनदियों रूपी वाहिकाओं के बेहतर प्रवाह की आवश्यकता होती है. जिस तरह गोमती नदी का प्रवाह गंगा नदी के लिए आवश्यक है, उसी प्रकार गोमती के प्रमुख प्राकृतिक ड्रेनेज में भी बहुत सी नदियां व नेचुरल नाले सम्मिलित होते हैं. गौघाट के बाद जब गोमती लखनऊ में प्रवेश करती है तो इसे सर्वाधिक प्रवाह प्राकृतिक कुकरैल नाले से प्राप्त होता है, जो मानसून के सीजन में नदी की मुख्या धारा को गति प्रदान करने में अग्रणीय है. लखनऊ जिले की जल निकासी गोमती नदी, साई नदी एवं उनकी सहायक नदियों द्वारा नियंत्रित होती है. गोमती की सहायक नदीयों में यहां अखाड़ी नाला, झिलिंग नाला, बेहता नदी, लोनी नदी और कुकरैल नाला शामिल हैं.
लगभग 26 किमी लम्बा एवं 200 मीटर चौड़ाई लिए हुए कुकरैल नाला मुख्यतः एक भूजल सिंचित नदिका है, जो कुकरैल आरक्षित वन क्षेत्र से उद्गमित होकर गोमती नदी में माध्यम धारा के रूप में प्रवाहित होता है. यह केंद्रीय गंगा मैदान के नीचे गोमती-घघारा नदी के इंटरफ्लूव क्षेत्र में स्थित है. कुकरैल नाले बेसिन का कुल क्षेत्र 86.75 वर्ग किमी है, प्रथम क्रम की धाराएं बेसिन पर अधिकतम हावी है. कुकरैल बेसिन की कुल परिधि 49.46 किमी है तथा मूल से बेसिन की अधिकतम लंबाई नदी के संगम से अंत बिंदु तक 16.76 किमी है. कुकरैल नाले में गिरने वाली प्रथम, दूसरी व तीसरी क्रम की सहायक नदियों की कुल संख्या क्रमशः 77, 14 और 3 है. इन सभी उपधाराओं की कुल लंबाई क्रमशः 40.55 किमी, 12 किमी, 4 किमी तथा 23 किमी है. सभी क्रमों की धाराओं की कुल संख्या 95.55 किमी की कुल लंबाई को कवर करती है, जो लखनऊ शहर की एक प्रमुख जल निकासी प्रणाली है और गोमती के लिए बेहद मूल्यवान है.
दीगर है कि नदी जल प्रणाली ना केवल वनस्पतियों एवं जीवों की विस्तृत श्रृंखला को पोषित करती है अपितु केंद्रीय गंगा जलोढ़ मैदानों को भी सिंचती है. इस लिहाज से देखा जाए तो कुकरैल नाला लखनऊ जिले में वर्षा जल को गोमती तक पहुंचाने का कार्य करता है, साथ ही भूजल रिचार्ज का भी मुख्य स्त्रोत है. मानसून के समय यह बारिश के प्रवाह को जल निकासी से गोमती में प्रवाहित करके न केवल जलप्रलय के खतरे को कम करता है, बल्कि बाढ़कृत मैदानों की मृदा को सम्पोषित करके गंगा जल प्रणाली को समृद्ध बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है. परन्तु विगत कुछ वर्षों से यह अनदेखी का शिकार हुआ जिससे वर्तमान में यह एक मृत धारा बनकर गोमती की मुख्य धारा से कट गया है. यदि सेटेलाइट छवियों द्वारा निरीक्षण करें तो ज्ञात होता है कि किस प्रकार कभी गोमती बैराज के समीप गोमती में मिलने वाला कुकरैल आज प्रदूषित होकर स्वयं में ही सिमट गया है, और यही नहीं अब यह केवल असंशोधित सीवेज से गोमती को मैला कर रहा है.
प्रदेश के सिंचाई विभाग की लापरवाही भरी नीतियों के कारण कभी गोमती की जीवन रेखा का प्रमुख बिंदु रहा कुकरैल आज गोमती के ही दम घोंटने पर विवश है. सिंचाई विभाग द्वारा हार्डिंग पुल से गोमती के किनारों के साथ दो बड़े ट्रंकों का निर्माण गोमती बैराज के डाउनस्ट्रीम तक किया गया था, जिससे कुकरैल नाले समेत शहर के लगभग 20 नालों का सीवेज बहिर्वाह हो सके और लॉ मार्टिनियर कॉलेज के पास डाउनस्ट्रीम क्षेत्र में सीवेज का निर्वहन किया जा सके, ताकि आगे सीवेज भरवाडा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की और बहे. परन्तु सरकारी दोषपूर्ण परियोजना के चलते निर्मित ट्रंक कुकरैल के समग्र बहिर्वाह को ले जाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि कुकरैल का अतिरिक्त निर्वहन नालों में जाने के स्थान पर गोमती को प्रदूषित कर रहा है. इसका प्रत्यक्ष प्रभाव गोमती के जलीय जीवन, आस पास के जीव जंतु एवं लोगो पर भी देखा जा रहा है.
यदि सरकार खर्चीली परियोजनाएं बनाने के स्थान पर कुकरैल नाले, हैदर नाले, झिलिंग नाले इत्यादि जैसे प्राकृतिक प्रवाहों के उचित संरक्षण की ओर ध्यान दे तो स्थिति सुधर सकती है. नियमानुसार सीवेज नीतियां बनाकर, बड़े संयंत्रों के स्थान पर छोटे किन्तु कारगर सीवेज प्लांट स्थापित करके, स्थानीय निवासियों को स्वच्छता सम्बंधी अभियानों में सम्मिलित करके, अधिग्रहण पर क़ानूनी रोक लगाकर सरकार कुकरैल को जीवन प्रदान कर सकती है और यह आवश्यक भी है, क्योंकि गोमती का संरक्षण तभी संभव है जब उसमे गिरने वाले प्राकृतिक प्रवाहों की अनदेखी ना की जाए. लखनऊ में गोमती के सही विकास के लिए रिवरफ्रंट से कहीं अधिक कुकरैल जैसे कुदरती नालों का बेहतर प्रबंधन आवश्यक है.