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गोमती नदी अपडेट - गोमती की सहायक नदियां हो रही उपेक्षा का शिकार

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  • Venkatesh Dutta
  • September-01-2018

नदियां एक बेहतर व्यवस्थित प्रणाली के अंतर्गत बहती हैं, इन्हें कुदरत द्वारा एक दुसरे के साथ कुछ इस प्रकार जोड़ा गया है कि मुख्य नदी की जल आपूर्ति उसकी सहायकों द्वारा वर्ष भर अनवरत होती रहती है. यदि नदी मौसमी या कहें बरसाती भी हो तो भी वह अपनी सहायक नदिकाओं से जल प्राप्त करके प्राकृतिक रूप से बहती रहती है. परन्तु कुछ वर्षों से मनुष्यों द्वारा प्रकृति के साथ की गई अनचाही घुसपेंठ ने नदियों के कुदरती स्वरुप, उनकी प्रवाह प्रणाली आदि को बुरी तरह प्रभावित किया है. गोमती जो भूजल सिंचित एवं मानसूनी नदी के तौर पर जानी जाती रही है, वर्षों पहले अबाध बहा करती थी. गोमती की विशेष ग्राउंड वाटर रिचार्ज क्षमता कुछ इस प्रकार की थी कि वह कभी सुखा नहीं करती थी और साथ ही अपनी उपनदियों से जल ग्रहण करके गोमती वर्ष भर जल से लबालब रहा करती थी. वही गोमती नदी आज छोटे तालाबों में विभाजित होकर रह गयी है, अधिकतम स्थानों पर तो गोमती नदी के नाम पर केवल सूखी जमीन ही नजर आती है. 

गोमती की प्रमुख सहायक नदियों में कथिना, भैंसी, सरायन, गोन, रेंठ, तरेउना, छोहा, आंध्र छोहा, बहता, सई, कल्याणी आदि प्रमुख हैं. गोमती के 15 मुख्य बहाव क्षेत्रों में आने वाली ये सभी नदियां जो गोमती की महत्त्वपूर्ण वाहिकाओं का कार्य बखूबी किया करती थी, आज स्वयं भी उपेक्षा का शिकार बनी हुई हैं. इन सभी बहाव क्षेत्रों से गोमती आज अधिकतर प्रदूषित जल ही ग्रहण कर रही है.गोमती और उसकी सहायक नदियों का प्रवाह विगत कुछ वर्षों में अत्याधिक घटा है. बढ़ते शहरीकरण और असंशोधित सीवेज ने इन नदियों के जल को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. मानसूनी वर्षा दर में कमी आने से एवं गोमती के बहाव क्षेत्रों में जंगलों के समाप्त होने से नदी की भूजल रिचार्ज क्षमता पर भी प्रभाव पड़ा है, कभी गोमती और उसकी उपनदिकाएं सदानीरा हुआ करती थी, परन्तु आज यें सभी केवल वर्षा के जल पर ही निर्भर रह गयी हैं. सहायक नदियों में जल स्तर के घटने से गोमती के जल स्तर पर भी प्रभाव पड़ा और नदी का दायरा कम होने लगा और वह तालाबों या कुंड में सिमट कर रह गयी. 

नदी का उद्गम स्थल, पीलीभीत –

गोमती नदी पीलीभीत के माधोटांडा कस्बे के गोमत ताल से निकलती है. यह अधिकतर दलदली क्षेत्र है, जहां से गोमती लगभग 47 किमी की यात्रा करती हुई आगे बढती है. यहां भी गोमती अधिकांशत जमीन अधिग्रहण के कारण बेहद संकुचित हो गयी है. कम वार्षिक दर से नदी की प्रवाह जल क्षमता भी कम हुई, जिससे गोमती कईं छोटे टुकड़ों में बंट गयी. ये सब भी अधिकतम सूखे ही रहते हैं. एक्कोतारनाथ में स्थापित एक झील ही यहां गोमती के लिए जल की एकमात्र स्त्रोत है.

शाहजहांपुर जिला  : सूखे की शिकार उपनदियां 

गोमती इस जिले में लगभग 80% जल सहायक नदियों तरेउना तथा भैंसी से प्राप्त करती है, परन्तु इन नदियों की हालत बेहद खराब है. यहां हालत ये हैं कि गोमती यह दिखाई ही नहीं देती है. इस जिले में आकर सहायक नदियों के अभाव में गोमती यहां बिलकुल सूख जाती है. यहां उप नदियों को संरक्षित किये जाने की अत्याधिक आवश्यकता बनी हुई है.

 

लखीमपुरखीरी जिला : अतिक्रमण से बिगड़ते हालात 

गोमती इस जिले में छोहा तथा आंध्र छोहा से जल ग्रहण करती है, परन्तु ये दोनों ही उपनदियां वर्तमान में लापरवाही का शिकार होकर निष्क्रिय एवं सुस्त सी पड़ चुकी हैं. यहां भी जल की मात्रा बेहद कम रह गयी है, जिसका एक बड़ा कारण किसानों द्वारा नदी जमीन पर चाइना राइस जैसी फसल की खेती करना बताया जाता है. इस प्रकार की फसलें अधिक जल ग्रहण करती हैं, जिससे ज़मीन में जल की मात्रा स्वत: ही अल्प हो जाती है, जो इन नदियों के लिए घातक है. 

हरदोई जिला: प्रमुख सहायक सई नदी को संरक्षण की जरूरत 

हरदोई जिला जहां से गोमती की प्रमुख सहायक सई नदी बहती है, वहां लगभग 20 हेक्टेयर के वन्य क्षेत्र धोबिया घाट के आस पास का इलाका बेहद बुरे हालातों में है. यहां सई नदी लगभग सूख चुकी है. नदी तट पर ज्यादातर कृषि होने के कारण 500 किमी का भू-भाग अतिक्रमित हो चुका है. नदी के किनारे कृषि के लिए पाट दिए जाने से नदी जल में न केवल कमी आई है अपितु कृषि रसायनों से नदी का जल प्रदूषित भी हुआ है. 

लखनऊ शहर: बदहाल गोमती व अन्य उपनदियां 

लखनऊ आकर तो गोमती का प्रवाह मानो रुक ही जाता है. गौघाट के बाद से यहां गोमती की हालत बदतर हो जाती है. पिछले वर्ष की कैग रिपोर्ट के अनुसार गोमती लखनऊ में अत्याधिक प्रदूषित हो चुकी है, लगभग 26 असंशोधित सीवेजों के गोमती में प्रत्यक्ष गिराने तथा उपनदी बेहता के बिलकुल सूख जाने के कारण गोमती यहां विषैली बन चुकी है. इसके अतिरिक्त यहां कुदरती प्रवाह वाले कुकरैल नाले को भी रोक दिया गया, जो शारदा के माध्यम से अब केवल प्रदूषित जल गोमती में बहा रहा है. 

सरकार को यदि गोमती को संरक्षित करना है तो अवश्य ही उसके सहायक नदी तंत्र, जो मरने की कगार पर खड़ा है, को भी जीवित करना होगा. फिलहाल तक केवल सीतापुर की सरायन एवं गोन नदी ही कुछ हद तक गोमती को सांसें दे रही है, परन्तु इन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता बनी हुई है. समय रहते यदि गोमती नदी तंत्र को सरकार द्वारा उचित प्रयासों के माध्यम से संरक्षित नहीं किया गया तो गंगा की ये सहायक निश्चय ही एक दिन समाप्त हो जाएगी.   

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कमेंट्स

  • Mandeep Singh
  • May 15, 2020, 10:03 a.m.

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