गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट की तमाम योजनाओं नेनदियों की हालत को केवल खराब ही किया है. वर्तमान में गोमती नदी की धारा टूट रही है और उसके संरक्षण की आस ख़त्म है। इस निर्माण कार्य ने गोमती को उसके प्राकृतिक जल स्त्रोतों से अलग कर दिया है। अब इसे देख के डर ये लगता है कि क्या गोमती फिर कभी पहले जैसे हो पाएगी ? कुछ वक़्त पहले सिचाई विभाग ने ड्रेजिंग के बहाने नदी को पुनः जीवित करने का दावा किया था, पर अब नदी की हालत को देखकर कहीं से भी नहीं लगता कि किसी प्रकार की कोई योजना काम कर पायी है।
हाल ही में गोमती की स्थिति पर ध्यान दे तो नदी सूखने की कगार पर है, लखनऊ में गोमती जलापूर्ति नहीं कर पा रही है और जल संस्थान जलस्तर के बढ़ने के लिए मानसून की प्रतीक्षा में हैं. क्या यह मनन योग्य नही है कि यदि सरकार ढेरों परियोजनाएं लाकर नदी को कंक्रीट का महल बनाने पर उतारू होकर स्वयं को अत्याधुनिक दिखने का प्रयास करती है, तो दूसरी और मरते नदी तंत्र के लिए केवल मानसून की राह क्यों तकती दिखाई पड़ती है? करोड़ों खर्च करके, बड़ी बड़ी बातें करके भी यदि आप नदी को जीवनदान नहीं दे पाते, तो क्या इन परियोजनाओं पर लगाम नहीं लगनी चाहिए?
गोमती जो की लखनऊ मे 19 किमी का सफर तय करती है, सबसे ज्यादा यही प्रदूषित होती है। सरकारों ने 1400 करोड़ खर्च डाले पर गोमती को प्रदूषण से निजात न मिल पायी। लखनऊ में लगाया गया एशिया का सबसे बड़ा भरवारा एस टी पी भी गोमती की सफाई मे कुछ ख़ास अंतर नहीं ला पाया। इसके उलट वो 2 वर्षों मे ही खराब हो गया। जिसके लिए सरकार ने 18 करोड़ भी पारित कर दिए है।
जो ध्यान पहले नदी से प्रदूषण को अलग करना था वो गोमती रिवर फ्रंट को जामा पहनाने मे लग गया। गोमती रिवर फ्रंट के लिए बहुत सी जगहों पर ड्रेजिंग की गयी, जिसमें करोड़ो खर्च हुए है। इसके साथ नदी को कई जगह से पानी रोक के बाँध भी दिया गया है, जिसके चलते नदी पतली हो गयी। धारा टूट गयी है और नदी मरण के कगार पर है। गोमती के दोनों ओर बनाई जा रही दीवार ने रही सही कसर पूरी कर दी है। भारी-भारी मशीनें नदी के पेट में सीमेंट का घोल डालकर उसका जमीनी जल स्त्रोतों से रिश्ता खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी हैं।
गोमती की सफाई में समस्या :
गोमती को साफ़ करने की मुहिम को रुकावट का सामना करना पड़ रहा है। सीवरेज से निजात दिलाने और सीवरेज पे सोध करने मे रुकावटें आ रही है। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने हेतु ज़मीन नहीं मिल रही है। बहुत वक़्त तक लंबित रहे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट जब तक चालु होते है तब तक उनके क्षमता बढ़ने का समय आ जाता है और बढ़ते वक़्त के साथ नयी तकनीक आ जाती है तथा लागत बढ़ जाती है। सीवर लाइन बिछाने में समस्याएं आ रही है। अलग अलग विभागों की भूमियों पर सीवर लाइन डालने की अनुमति नहीं मिल पाती है। कुछ योजनाएं केंद्र मे अटैक जाती हैं। योजनाएं अक्सर दो सरकारों के बीच अटक के रह जाती है। एक सरकार का कार्यकाल ख़त्म होने पर दूसरी सरकार के आने पर वो अपनी योजनाएं लाती है और पहले से अनुमानित योजनाओं को रोक देती है। नीतियों मे बदलाव भी गोमती की सफाई मे रुकावट का एक कारण है। नीतियों को जब प्रस्तावित किया जाता है और जब तक वो कार्य मे लायी जाती है ,उनमे बहुत बदलाव हो जाते है।
देश मे नदियों का हाल बेहाल :
दुखद पहलु यह है कि नदियां जो हमें जीवन देती है, पानी देती है, खेती के लिए भूमि देती है, सदियों तक सभ्यतायों को बाँध कर रखती है, हमारे देश मे उन्हीं की दुर्दशा है। जीवनदायिनी और सबसे ज्यादा पूजे जाने वाली नदियाँ गंगा और यमुना भी आज भारत वर्ष की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियाँ है। यही हाल भारत में बाकी 275 नदियों का है, चिंताजनक बात यह है कि इन नदियों की हालात सुधरने के बजाय बदतर होती जा रही है। सरकार और लोगो की तमाम कोशिशों के बावजूद भी इनकी स्थिति मे कोई सुधार नही आ रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश की 445 मे से 275 नदियाँ प्रदूषित है। अहम तथ्य यह है कि प्रदूषित नदियों की संख्या पिछले 5 वर्षों मे दोगुनी हुई है। देश की नदियों मे सीवेरज बहता है और असंसोधित वेस्ट वाटर को भी इसी मे छोड़ा जाता है। लखनऊ मे 36 नालों का पानी गोमती को गन्दा करता है। इसके अलावा औद्योगिक कचरा भी नदी के पानी मे मिलके उससे गन्दा करता है। कानूनों का भी सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। नदियों के बाढ़कृत मैदानों पर गैरकानूनी निर्माण करवाये जा रहे है।
तो कैसे हो नदियों का संरक्षण :
जिस प्रकार एनजीटी द्वारा गंगा किनारे वृहद वृक्षारोपण की मुहिम उत्तर प्रदेश गंगा हरीतिमा योजना चलाई जा रही है, और तटीय क्षेत्रों में जन सहभागिता व सरकारी विभागों के माध्यम से सघन वृक्षारोपण, मृदा एवं जल संरक्षण, प्रदूषण की रोकथाम आदि को सक्रिय किया जा रहा है उसी प्रकार गोमती के लिए भी इस प्रकार के अभियान अमृत साबित हो सकते हैं. नदी किनारे जलग्रहण क्षेत्रों में पलाश, महुआ, शीशम आदि वृक्षों के माध्यम से प्रदूषण को नियंत्रित होने व भूजल रिचार्ज होने में सहायता मिल सकती है. इसके अतिरिक्त सरकार को रिवरफ्रंट के नाम पर बड़ी बड़ी परियोजनाओं में करोड़ो रूपये अंधाधुंध खर्च करने के स्थान पर उनके कुदरती स्वरुप को बरकरार रखने पर अधिक ध्यान देना चाहिए.