सदानीरा रही गोमती हजारों वर्षों से अनेकों संस्कृतियों को सहेज रही है, कईं सभ्यताओं को पनपने में अपनी भूमिका प्रदान कर चुकी है, अनगिनत पौराणिक मान्यताओं ने इसके पवित्र तटों पर विश्राम ग्रहण किया है तथा बेहिसाब जलचर, दुर्लभ वनस्पतियां व वन्य जीवन गोमती पर निर्भर हैं. गोमती अपने आप में अनूठी नदी है, जो बरसाती होने के बावजूद भी अपने आप को भूजल द्वारा रिचार्ज करने की क्षमता में माहिर रही है. स्वतंत्रता पूर्व भारतीय इतिहास पर नजर घुमाये तो पाएंगे कि किस प्रकार मानसून से जल ग्रहण करने वाली गोमती वर्ष भर अपने आस पास के जन जीवन का पोषण निरंतर करती रही है. करोड़ों लोगों की जीवनचर्या को गोमती ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लाभांवित किया है.
आज वही पतित पावनी गोमती प्रदूषण, अतिक्रमण, भूजल स्तर के घटने से संकुचित होती जा रही है, ग्रामीण अंचल के साथ ही शहरी इलाकों में यह अत्याधिक प्रदूषण झेल रही है. गोमती के संरक्षण को लेकर गोमती सेवा समाज निरंतर प्रयासरत रहा है, गोमती यात्रा के जरिये घाटों के सौंदर्यीकरण, स्वच्छता, पौधारोपण, संदेश बोर्ड, विचारगोष्ठी आदि के जरिये समाज को जागरूक करने का कार्य गोमती सेवा समाज के सदस्य कर रहे हैं.
इसी कड़ी में गोमती सेवा समाज टीम ने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली पत्रिका साहित्यिक शब्दसत्ता के संपादक सुशील सीतापुरी के साथ मिलकर एक और गोमती यात्रा का आयोजन किया. टेढ़ेनाथ धाम से बरुआ घाट तक की गयी इस यात्रा के अंतर्गत स्थानीय जनता को जागरूक करने हेतु गोमती संरक्षण अभियान से जोड़ा गया और साथ ही टीम गोमती के पेम्प्लेट्स भी वितरित किये गए.
ज्ञात हो कि पौराणिक नदी आदि गोमती के सांस्कृतिक व धार्मिक महत्त्व को उजागर करने के लिए सेवा सदन संस्था के संयोजन में शब्दसत्ता पत्रिका के संपादक सुशील सीतापुरी "मैं हूँ तुम्हारी गोमती" श्रृंखला के तहत विभिन्न घाटों की यात्राएं की जा रही हैं. जिसमें गोमती नदी के किनारे लगने वाले मेलों, घाट संस्कृति, तटीय इलाकों का गोमती से जुड़ाव, लोक परम्पराओं आदि को कवर किया गया. जिसे भविष्य में एक पुस्तक का रूप दिया जायेगा.
गौरतलब है कि इससे पूर्व भी गोमती सेवा समाज के सदस्यों के साथ मिलकर सुशील सीतापुरी ने पुरैना घाट, नासियाघाट, इमलिया घाट, सिद्धबाबा, गोमती पुल, सिरसाघाट, ऊचवाघाट, अमरीदेवीघाट, कांकर घाट आदि की यात्रा की थी. यात्रा की इसी श्रृंखला को धीरे धीरे आगे बढ़ाया जा रहा है. इन यात्राओं के अंतर्गत नदी संस्कृति से लोगों को जोड़ने के लिए विचारगोष्ठियों का आयोजन भी गोमती सेवा समाज द्वारा कराया जाता है, जिसमें गोमती की वर्तमान स्थिति का जमीनी स्तर पर जायजा लिया जाता है.
गोमती यात्रा के इस अवसर पर टीम गोमती के सदस्यों में बक्शीश सिंह, ओपी मौर्या (ओमप्रकाश), मनदीप सिंह, देवेश बाजपेयी आदि के साथ सुशील सीतापुरी व विभिन्न धामों के संत भी मौजूद रहे और गोमती के संबंध में विस्तारपूर्वक चर्चा की.