लॉकडाउन के इस दौर में गोमती नदी के कायाकल्प की आस जगी है. हाल ही में प्रदेश सरकार ने गोमती उद्गम स्थल पर मनरेगा योजना के तहत 300 मजदूरों को लगाया है, जिससे गोमती की दशा को सुधारा जा सके.
पीलीभीत में पूरनपुर माधोटांडा रोड पर गोमती गेट पर अभी उद्गम स्थल को पुनर्जीवन देने के लिए प्रयास शुरू हुए हैं, जिसके बाद कार्य गति पकड़ेगा और उद्गम स्थल को संवारा जायेगा. बता दें कि पीलीभीत जिले में मनरेगा योजना के अंतर्गत काम का दायरा लगातार बढ़ाया जा रहा है, जिससे अधिक से अधिक मजदूरों को काम मिल सके.
मनरेगा योजना के अंतर्गत गोमती उद्गम स्थल के पुनरुद्धार के लिए जो योजनायें बनाई गयी हैं, वह इस प्रकार हैं..
1. राजस्व एवं सिंचाई विभाग के समन्वय से गोमती नदी का सीमांकन व रेखांकन किया जाएगा.
2. ग्राम पंचायत डेवलपमेंट प्लान के तहत श्रम बजट अनिवार्य रूप से योजना का हिस्सा होगा.
3. गोमती के दोनों तटों के एक किलोमीटर के दायरे में स्थित तालाबों को रिचार्ज पोंड के रूप में विकसित किया जाएगा. इस दिशा में तालाबों को पुनर्जीवित भी किया जायेगा.
4. नदी के बेसिन व तटों से मृदा के अपरदन को रोकने के लिए नदी के दोनों किनारों पर सघन वन रोपण का कार्य भी होगा.
5. डिस्ट्रिक्ट रिवर रिजूवेशन कमेटी के अंतर्गत डीएम की अध्यक्षता में सीडीओ, मनरेगा के सदस्य सचिव, सामुदायिक संगठन, पर्यावरण सेवी संस्थाएं, सिंचाई विभाग, वन विभाग, भूमि विकास, जल संसाधन विभाग आदि के अधिकारियों की सहभागिता में कार्य को समयबद्ध ढंग से करने के लिए एकीकृत कार्ययोजना बनाई जाएगी.
बता दें विगत कईं दशकों से देश की तमाम छोटी-बड़ी नदियों की तरह ही उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले स्थित फुलहर झील से उद्गमित होने वाली गोमती भी उपेक्षा का शिकार बनी हुयी है. अपने उद्गम स्थल के बाद से ही गोमती की जमीन पर अतिक्रमण कर लिया गया है, जिससे नदी कई स्थानों पर तो पूरी तरह सूख चुकी है और जहां बची है, वहां भी शासन-प्रशासन की उपेक्षा और स्थानीय लोगों की लापरवाही के चलते अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है.
लखनऊ के बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विद्यापीठ के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ वेंकटेश दत्त ने भी जस्टिस आदर्श कुमार गोयल को पत्र लिखकर गोमती की वर्तमान अवस्था और समस्याओं से अवगत कराया और बताया कि किस तरह गोमती की भूमि पर अतिक्रमण और साठा धान की खेती के चलते वर्ष 1978 से 2016 के मध्य इसके प्रवाह में 52 प्रतिशत गिरावट आई है और नदी 95 किमी तक सूख चुकी है, जो चिंतनीय है. यदि गोमती के फ्लड प्लेन्स व रिवर कॉरिडोर्स को अतिक्रमण से मुक्त नहीं कराया गया तो भविष्य में नदी के जीवन पर भारी संकट आ जायेगा, जिसका प्रभाव न केवल नदी अपितु इस पर निर्भर जल जीवन और लाखों लोगों पर भी होगा, साथ ही गंगा नदी पर भी इसका दुष्प्रभाव होगा.
वैसे तो फिलवक्त पूरे देश में कोरोना का खतरा बना हुआ है, जिसके चलते लॉकडाउन जारी है. लेकिन लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभाव निम्न आयवर्गीय परिवारों, विशेषकर श्रमिकों व कामगारों पर पड़ा है, जिनका रोजगार दिहाड़ी मजदूरी से चल रहा था. इसी के चलते उत्तर प्रदेश में शासन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि अधिक से अधिक मजदूरों को काम मिल सके. मजदूरों की सुरक्षा के भी इंतजाम प्रशासन की ओर से किये गए हैं और सभी कामगारों को सुरक्षा के मद्देनजर मास्क, ग्लोव्स और सेनेटाइजर मुहैया करवाए गए हैं.
फिलहाल गोमती नदी को उसके उद्गम स्थल पर जीवन देने के क्रम में पीलीभीत जिले की कुल 721 ग्राम पंचायतों में से 361 ग्राम पंचायतों में कार्य आरंभ हुआ है और अभी बाहरी स्तर पर ही कार्य कराया जा रहा है. जिसके बाद नदी को ठीक उद्गम स्थल से ही संवारने की प्रक्रिया शुरू होगी. सुधार कार्य की शुरुआत अभी गोमती गेट से की गयी है. जिले के सीडीओ ने भी जानकारी देते हुए बताया कि जल्द ही पूरे जिले में कार्य शुरू कराकर शत-प्रतिशत मजदूरों को रोजगार दिया जायेगा.