उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जनवरी-दिसम्बर 2018 के अंतराल में लिए गए आंकड़ों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि लखनऊ में गोमती के प्रदूषण के लिए नाले जिम्मेदार हैं, जिनसे असंशोधित अवजल निरंतर गोमती मैं गिराया जा रहा है. वर्ष भर के आकलन के आधार पर तैयार की गयी रिपोर्ट यह पूरी तरह साबित करती है कि किस प्रकार लखनऊ में प्रवेश से पहले और निकलने के उपरांत नदी जल की गुणवत्ता लखनऊ से काफी बेहतर है. लखनऊ में गोमती नदी का जल इस कदर प्रदूषित हो चुका है कि ट्रीटमेंट के बाद भी यह उपयोग के लायक नहीं बचा है.
यूपीपीसीबी के द्वारा वर्ष 2018 के
अंतर्गत गोमती नदी के जल के नमूने विभिन्न स्थानों से जुटाए गए, जिनकी जांच का
मुख्य आधार घुलित ऑक्सीजन (डीओ), जैव ऑक्सीजन (बीओडी) और टोटल कॉलिफोर्म को बनाया
गया. जांच के दौरान जहां अधिकतर स्थानों पर डीओ अत्याधिक कम अथवा शून्य मिला है,
वहीं बीडीओ की मात्रा हानिकारक स्तर तक बढ़ी हुई है. साथ ही टोटल कॉलिफोर्म की 30
गुना अधिक मात्रा यह स्पष्ट करती है कि सीवर किस प्रकार नदी जल को दूषित कर रहा
है.
गोमती के जल में जिस स्तर का
प्रदूषण पाया गया है, उससे स्पष्ट है कि नालों का अपशिष्ट एसटीपी से बिना शोधन के
ही नदी में डाला जा रहा है. आंकड़ों की माने तो गोमती बैराज और पिपराघाट से प्रवाहित
होने के बाद गोमती नदी में भरवारा एसटीपी से ट्रीट हुआ सीवरेज वाटर गिराया जाता है,
जिससे यहां डीओ और बीओडी के स्तर में सुधार होना चाहिए. परन्तु यहां स्थिति इसके
ठीक विपरीत है. इसके चलते अब विशेषज्ञों द्वारा भरवारा एसटीपी की क्रियाप्रणाली पर
प्रश्नचिन्ह उठ रहे हैं, क्योंकि टोटल कॉलिफोर्म का बढ़ता लेवल नदी में असंशोधित
सीवरेज की ओर इशारा कर रहा है. साथ ही हैदर, कुकरैल और घसियारी मंडी नाला भी गोमती
में प्रदूषण का स्तर निरंतर बढ़ा रहा है.
गऊ घाट, जहां से मुख्य तौर पर पेयजल आपूर्ति के लिए पानी को पंप किया जाता है, से ठीक पहले पाटा, सरकटा और नगरिया नाले गोमती नदी में गिर का प्रदूषण का स्तर बढ़ा रहे हैं. इनके कारण डाउनस्ट्रीम के साथ साथ अपस्ट्रीम का पानी भी दूषित हो रहा है.
गोमती नदी जल परीक्षण के लिए
यूपीपीसीबी के द्वारा लखनऊ से पहले, लखनऊ के अंतर्गत और लखनऊ के बाद गोमती जल के
निरीक्षण के लिए विभिन्न स्थानों से जल के सैंपल उठाए गए थे. लखनऊ से पहले सीतापुर
स्थित दाधनामऊ घाट से लिए गए जल के नमूनों में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 8.0,
बीडीओ 2.3 और टोटल कॉलिफोर्म 1147 है, जो इशारा करता है कि लखनऊ से पहले गोमती का
जल सही अवस्था में है.
गऊ घाट जो लखनऊ के पेयजल आपूर्ति
का प्रमुख आधार है, वहां ऑक्सीजन का स्तर 5.6 है, बीडीओ 4.1 तथा टोटल कॉलिफोर्म 5117
रिकॉर्ड किया गया. लखनऊ के ही मांझीघाट के अंतर्गत यह आंकड़ा क्रमशः 6.9, 2.6 और
2800 है, वहीं कुड़ियाघाट पर ऑक्सीजन का लेवल घटकर मात्र 2.7 रह गया, बीओडी 6.6 और
टोटल कॉलिफोर्म 19183 पाया गया है. लखनऊ के मोहन मिकिंस (2.4, 8.5, 24750),
निशांतगंज पुल (2.6, 10.3, 52500), गोमती बैराज (2.6, 11.1, 115333), पिपराघाट
(1.7, 13.5, 132667), भरवारा एसटीपी (2.5, 17.3, 142500) से लिए गए पानी के सैंपल
सर्वाधिक दूषित पाए गए.
लखनऊ से बाहर जौनपुर के पास से लिए
गए जल के नमूनों में हालांकि ऑक्सीजन की मात्रा (7.4) अधिक है और बीओडी (4.4) का
स्तर भी कम है, परन्तु टोटल कॉलिफोर्म (36333) की अधिक मात्रा इसमें भी सीवर
अपशिष्ट होने की पुष्टि करता है. जुटाए गए इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि किस
प्रकार लखनऊ में सीवर से निकला विष नदी के जल को मलिन कर रहा है, जिसका असर लोगों
के स्वास्थ्य पर तो होना जायज है ही, अपितु ऑक्सीजन का घटता स्तर जलीय जीवन के लिए
भी घातक है.
लखनऊ से प्रमुख गोमती संरक्षणकर्ता
और बीबीएयू के पर्यावरण विभाग के प्रो. डॉ. वेंकटेश दत्ता के अनुसार,
“लखनऊ के अंतर्गत बीकेटी से इंदिरानहर तक तकरीबन 38 नाले नदी में गिरते हैं. जहां रिवरफ्रंट के नाम पर लगभग 2.5 किमी के स्ट्रेच में सुधार किया गया था, वहीं 27 नालों का सीवर गिर रहा है. नदी को स्वच्छ बनाने के नाम पर भरवारा एसटीपी के जैसे अनगिनत प्रयोग किये गए हैं, जो लगातार असफल ही हुए हैं. आप देखें, तो पाएंगे कि अधिकारियों ने बहुत से स्थानों पर नदी को तालाब बना दिया है, कुड़ियाघाट का अस्थायी बांध अभी तक नहीं हटाया गया है. बैराज के गेट भी तभी खोले जाते हैं, जब नदी में प्रदूषण अधिकतम हो जाए. गऊ घाट जहां से शहर में पेयजल आपूर्ति की जाती हैं, उससे पहले ही नदी में तीन नाले गिर रहे हैं और गोमती बैराज से पहले घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर काफी हद तक कम है. गोमती बैराज से पहले दौलतगंज एसटीपी भी यहां बनाया गया, किन्तु इसकी क्षमता बढ़ाकर संचालन का काम अभी तक नहीं हुआ है.”
वहीं यूपीपीसी के स्थानीय अधिकारी
डॉ. रामकरन के अनुसार इन सभी आंकड़ों को सभी सम्बन्धित विभागों में भेजा गया है,
जिससे सही योजनाएं बनाकर नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में काम हो सके.