लखनऊ की जीवनरेखा मानी जाने वाली गोमती नदी, जो गंगा के अपवाह तंत्र में अहम योगदान भी देती है; आज लखनऊ में बदतर दिशा में है। प्रदूषण, अतिक्रमण, सीवरेज, रिवरफ्रन्ट आदि के चलते अपना प्राकृतिक स्वरूप खो चुकी गोमती को बचाने के लिए आज पर्यावरणविद और विशेषज्ञ इसकी प्राकृतिक सहायक नदियों को जीवनदान देने की सलाह दे रहे हैं। इन सहायक नदियों में सबसे प्रमुख है कुकरैल नदी, जिसे अब कुकरैल नाले के नाम से जाना जाता है। प्राचीन समय में यह एक नदी थी, जो गोमती के अपवाह में सबसे बड़ी सहायक हुआ करती थी। कुकरैल आरक्षित वन क्षेत्र से निकलने वाली यह नदी लगभग 26 किलोमीटर लंबी है लेकिन आज यह भी पूरी तरह से उपेक्षा की शिकार है।
कुकरैल नाला - गोमती की प्राकृतिक सहायक नदी
लगभग 26 किमी लम्बा एवं 200 मीटर चौड़ाई लिए हुए कुकरैल नाला मुख्यतः एक भूजल सिंचित नदिका है, जो कुकरैल आरक्षित वन क्षेत्र से उद्गमित होकर गोमती नदी में माध्यम धारा के रूप में प्रवाहित होता है. यह केंद्रीय गंगा मैदान के नीचे गोमती-घघारा नदी के इंटरफ्लूव क्षेत्र में स्थित है. कुकरैल नाले बेसिन का कुल क्षेत्र 86.75 वर्ग किमी है, प्रथम क्रम की धाराएं बेसिन पर अधिकतम हावी है. कुकरैल बेसिन की कुल परिधि 49.46 किमी है तथा मूल से बेसिन की अधिकतम लंबाई नदी के संगम से अंत बिंदु तक 16.76 किमी है. कुकरैल नाले में गिरने वाली प्रथम, दूसरी व तीसरी क्रम की सहायक नदियों की कुल संख्या क्रमशः 77, 14 और 3 है. इन सभी उपधाराओं की कुल लंबाई क्रमशः 40.55 किमी, 12 किमी, 4 किमी तथा 23 किमी है. सभी क्रमों की धाराओं की कुल संख्या 95.55 किमी की कुल लंबाई को कवर करती है, जो लखनऊ शहर की एक प्रमुख जल निकासी प्रणाली है और गोमती के लिए बेहद मूल्यवान है.
दीगर है कि नदी जल प्रणाली ना केवल वनस्पतियों एवं जीवों की विस्तृत श्रृंखला को पोषित करती है अपितु केंद्रीय गंगा जलोढ़ मैदानों को भी सिंचती है. इस लिहाज से देखा जाए तो कुकरैल नाला लखनऊ जिले में वर्षा जल को गोमती तक पहुंचाने का कार्य करता है, साथ ही भूजल रिचार्ज का भी मुख्य स्त्रोत है. मानसून के समय यह बारिश के प्रवाह को जल निकासी से गोमती में प्रवाहित करके न केवल जलप्रलय के खतरे को कम करता है, बल्कि बाढ़कृत मैदानों की मृदा को सम्पोषित करके गंगा जल प्रणाली को समृद्ध बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है. परन्तु विगत कुछ वर्षों से यह अनदेखी का शिकार हुआ जिससे वर्तमान में यह एक मृत धारा बनकर गोमती की मुख्य धारा से कट गया है. यदि सेटेलाइट छवियों द्वारा निरीक्षण करें तो ज्ञात होता है कि किस प्रकार कभी गोमती बैराज के समीप गोमती में मिलने वाला कुकरैल आज प्रदूषित होकर स्वयं में ही सिमट गया है और यही नहीं अब यह केवल असंशोधित सीवेज से गोमती को मैला कर रहा है.
प्रशासन की उपेक्षा झेल रहा है कुकरैल नाला
प्रदेश के सिंचाई विभाग की लापरवाही भरी नीतियों के कारण कभी गोमती की जीवन रेखा का प्रमुख बिंदु रहा कुकरैल आज गोमती के ही दम घोंटने पर विवश है. सिंचाई विभाग द्वारा हार्डिंग पुल से गोमती के किनारों के साथ दो बड़े ट्रंकों का निर्माण गोमती बैराज के डाउनस्ट्रीम तक किया गया था, जिससे कुकरैल नाले समेत शहर के लगभग 20 नालों का सीवेज बहिर्वाह हो सके और लॉ मार्टिनियर कॉलेज के पास डाउनस्ट्रीम क्षेत्र में सीवेज का निर्वहन किया जा सके, ताकि आगे सीवेज भरवाडा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की और बहे. परन्तु सरकारी दोषपूर्ण परियोजना के चलते निर्मित ट्रंक कुकरैल के समग्र बहिर्वाह को ले जाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि कुकरैल का अतिरिक्त निर्वहन नालों में जाने के स्थान पर गोमती को प्रदूषित कर रहा है. इसका प्रत्यक्ष प्रभाव गोमती के जलीय जीवन, आस पास के जीव जंतु एवं लोगो पर भी देखा जा रहा है.
कुकरैल को संरक्षित कर बचाया जा सकता है गोमती का प्राकृतिक नदी तंत्र
बीबीएयू में पर्यावरण विज्ञान विभाग से डॉ वेंकटेश दता ने अपनी टीम के साथ मिलकर कुकरैल नाले को एक बार फिर से उसका प्राकृतिक स्वरुप लौटाने का ब्लू प्रिंट तैयार किया है और प्रशासन को इसका प्रस्ताव भी भेजा है. गौरतलब है कि डॉ वेंकटेश दत्ता विगत 15 वर्षों से गोमती और उसके प्राकृतिक नदी तंत्र के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं और उनका मानना है कि यदि सरकार इसके ब्लूप्रिंट पर काम शुरू कर दे तो मात्र दो वर्ष में कुकरैल को उसका पुराना स्वरुप वापस दिलाया जा सकता है.
कुकरैल नाले को फिर से हरा भरा बनाने के लिए गोमती नदी के कंक्रीट रिवरफ्रंट में बदलाव करके कुकरैल नाले को नदी से जोड़ा जाएगा. डॉ वेंकटेश दत्ता के अनुसार कुकरैल का 200 मीटर चौड़ा बाढ़ का मैदान जैव विविधता पार्क बनाने में उपयोग किया जा सकता है, साथ ही वेटलैंड्स के विकास के लिए उद्यान भी बनाये जा सकते हैं और जल को स्वच्छ करने के लिए प्लांट लगाकर कुकरैल की धारा को अविरलता दी जा सकती है. इसके साथ साथ नाले के दोनों ओर पगडंडी बनाकर वाकिंग ट्रेल की सुविधा भी मुहैया करायी जा सकती है.
भूगर्भ जल को प्रदूषण से बचाने के लिए भी दोनों नदियों का संरक्षण जरूरी - डॉ वेंकटेश दत्ता
डॉ वेंकटेश दत्ता का कहना है कि बेतहाशा प्रदूषण के चलते अब गोमती का जल आम उपयोग के लिए भी मान्य नहीं रह गया है। बहुत से मानक जैसे डीओ, टीसी आदि पर भी नदी का जल स्तरीय नहीं रहा है, ऐसे में अब नदी के तटीय क्षेत्र का भूगर्भ जल भी संदूषित होने लगा है और बहुत से अध्ययन इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। नदी और नदी तंत्र को बचाने के लिए हमें जल्द पहल करनी होगी और इसका सबसे बेहतर विकल्प कुकरैल नदी को बचाना है। इस योजना का कोई बहुत बड़ा बजट भी नहीं है, कम से कम बजट में स्थानीय वनस्पतियों के प्रयोग से ही मात्र दो वर्षों में कुकरैल को नवजीवन दिया जा सकता है, जो गोमती के संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगा।
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