सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि "दो वस्तुओं की कोई सीमा नही; "एक अंतरिक्ष और दूसरा व्यक्ति की मूर्खता." यह कथन वर्तमान परिपेक्ष्य में सत्य की कसौटी पर खरा उतरता हुआ प्रतीत होता है. नदियों को पहले इंसानी जरूरतों ने मैला कर दिया और फिर उनके सुधारीकरण में पानी की तरह पैसे फूंक डाले, यह मूर्खता का प्रमाण ही तो है. गोमती नदी के संरक्षण पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं परन्तु गोमती की दशा स्वयं ही अपना दुखड़ा कहती दिखती है. अथाह प्रदूषण, तटीय क्षेत्रवासियों द्वारा अतिक्रमण, पानी के बहाव में अल्पता, सरकारी नीतियों का दिखावा यह सब काफी है गोमती का दर्द दर्शाने के लिए.
एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो वर्षों में लगभग 1400 करोड़ रुपए गोमती रिवर फ्रंट परियोजाओं में खर्च कर दिए गए परन्तु परिणाम केवल बदतर ही निकला. आज गोमती और अधिक प्रदूषित हो गई है, रबर डेम एवम् मेट्रो सिटी रोड के पास के इलाकों में गोमती के ऊपर सघन झाग उसके प्रदूषित स्वरूप को बयान करते दिख रहे हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की हालिया रिपोर्ट के अनुसार ED विभाग की शिकायत पर उत्तर प्रदेश सिचाईं विभाग के 8 सीनियर अभियंताओं के खिलाफ गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में गडबडी करने, घूसखोरी करने व प्रमुख दस्तावेजों की गोपनीयता भंग करने के आरोप में केस दर्ज किया गया.
गोमती संरक्षण की जमीनी हकीकत
टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा की गयी जांच-पड़ताल से दृष्टि गोचर हुआ कि गोमती परियोजनाओं के नाम पर जो पैसे पानी तरह बहाए गए उनका कोई उचित परिणाम नही निकला. रिवर फ्रंट के अंतर्गत लगी टाइलें व पत्थर जगह जगह टूटे हुए हैं, सरकारी विभागों द्वारा फाउंटेंस के नाम पर 40 करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद भी सभी फाउंटेंस निष्क्रिय खड़े हुए है, लोहिया पुल के पास लगे फाउंटेंस के पार्ट्स चुरा लिए गए तथा रबर डेम के पास लगी लाइट्स व म्यूजिकल फाउंटेंस उचित रखरखाव के अभाव में ख़राब हो चुके हैं. यहां तक कि गोमती के किनारों पर कूड़े का अंबार लगाना आम बात है.
सरकारी जांच पड़ताल प्रभावहीन
राज्य सरकार द्वारा गोमती की जांच पड़ताल के नाम पर केवल खर्चें किए गए. जिससे परियोजनाओं में बाधा के अतिरिक्त कुछ और हाथ नहीं लगा. सिंचाई विभाग भी केवल गोमती योजनाओं का खाका व इससे जुड़े खर्चें बताता रहा परंतु वस्तिवकता में 2016 के अंत तक लोहिया पथ के केवल 1.5 किमी. क्षेत्र का नवीनीकरण किया गया और वर्तमान में उसकी हालत भी संरक्षण के अभाव में बदतर है.
गोमती के उद्गम स्थल पीलीभीत के माधोटांडा कस्बे से शाहजहांपुर के बीच नदी पर अतिक्रमण अत्याधिक है, खेती के नाम पर गोमती के किनारों का अधिग्रहण आम बात है. कुछ स्थानों पर तो गोमती नजर भी नहीं आती है. नदी विशेषज्ञ डॉ. वेंकटेश दत्ता का मानना है कि प्रशासन चकबंदी रिकॉर्ड को दुरुस्त कर नदी की जमीन से जनता का अतिक्रमण समाप्त कराए तो नदी का स्वाभाविक प्रवाह बना रह सकता है.
लगातार बढ़ती जलकुंभी से गोमती के जल में पोषक तत्वों का ह्रास हो रहा है. एक हालिया रिपोर्ट दर्शाती है कि जलकुंभी की वृद्धि से गोमती में लगभग 30 से 40% तक ऑक्सीजन लेवल घटा है, जिससे जलीय जीवन संकट में है. इसके अतिरिक्त जलकुंभी सूर्य की रोशनी पानी के भीतर जाने से रोकती है जिससे जलीय पौधें प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के अभाव में दम तोड रहे हैं.
"गोमती का बहाव कम होना और प्रदूषण का अत्यधिक बढ़ना, इन दोनों परिस्थितियों के कारण ही जलकुंभी को पनपने का अवसर मिल जाता है." (प्रो. अमिता कनौजिया, लखनऊ वि. वि)
समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना में करोड़ों का घोटाला की बात सामने आई है. न्यायमूर्ति आलोक सिंह की जांच रिपोर्ट में इस योजना के तहत हुए करोड़ों के घोटाले वह नियमों की अनदेखी का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आरोपियों पर कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है. इस समिति में राजस्व परिषद के अध्यक्ष प्रवीण कुमार, प्रमुख सचिव न्याय रंगनाथ पांडेय, अपर मुख्य सचिव वित अनूप पांडेय को इसका सदस्य बनाया गया है. करोड़ों खर्च कर बनाए गए इस रिवर फ्रंट के निर्माण में हुई गड़बड़ियों के लिए चिन्हित दोषियों पर कारवाई की अनुशंसा से पहले सुरेश खन्ना की जांच समिति में तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन, प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल का पक्ष जानने का निर्णय लिया है.
गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट की परियोजना के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 656 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई थी जो धीरे-धीरे बढ़कर 1513 करोड़ रुपए हो गई. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा किस राशि का 95 प्रतिशत हिस्सा खर्च हो चुका है जबकि इस परियोजना का महज 60 प्रतिशत कार्य ही पूरा हो पाया है. इस परियोजना के शुरू होने के बाद गोमती अब पहले से भी कहीं ज्यादा दूषित हो चुकी है. मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोमती रिवर फ्रंट का निरीक्षण किया और वहां का हाल देखकर सेवानिवृत न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में समिति गठित कर 45 दिनों के अंदर इसकी रिपोर्ट मांगी थी. जो रिपोर्ट अब मुख्यमंत्री को सौंपी जा चुकी है. इसके आधार पर ईडी द्वारा गोमती रिवरफ्रंट से जुड़े आठ अभियंताओं पर घोटाले का केस दर्ज किया गया है.
लखनऊ की जीवन रेखा कही जाने वाली गोमती आज मिटने के कगार पर पहुंच गई है. जगह-जगह उसका पानी सूख चुका है. कई जगहों पर अब सिर्फ टीले ही नजर आते हैं. योगी सरकार को आज यह भी देखना और समझना होगा कि जिस परियोजना को चालू किया गया उसका मुख्य उद्देश्य स्वछता और नदी की निर्मलता को बढ़ाना था, मगर इस परियोजना के शुरू होने के बाद आज गोमती और भी ज्यादा दूषित हो चुकी है. मुख्यमंत्री जी को इस चीज की भी जांच करवानी चाहिए कि जिस परियोजना को लेकर इतने करोड़ खर्च किए गए क्या उस परियोजना पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण, प्राकृतिक संरचनाओं का ध्यान और नदी पर पड़ने वाले प्रभाव का भी आकलन किया गया?