23 मार्च, 2017
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
नदियों के किनारे किनारे अनगिनत संस्कृतियां पोषित होकर अविस्मरणीय ऐतिहासिकता को प्राप्त करती हैं. जल है तो जीवन है, यह पंक्ति सभी बोलते नजर आते हैं, पर वास्तविकता यह है कि नदियां हैं तो जीवन है. परंतु आज जीवनदायिनी का जीवन स्वयं संकट में है, भारत की अधिकतर नदियां अपने स्वरूप के लिए संघर्ष कर रहीं हैं. उन्हीं में से एक है गोमती नदी, जो गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है और गंगा बेसिन के एक बड़े भू-भाग को पोषित करती है. कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार आज गोमती प्रदूषण की चरम सीमा तक पहुंच चुकी है तथा गंगा नदी से भी अधिक प्रदूषित हो चुकी है. सरकारी लापरवाहियों, जन सामान्य की अवहेलनाओं को झेलते झेलते गोमती जैसी जीवंत नदी आज मृत्यु की कगार पर खड़ी है. जो गोमती कुछ दशक पूर्व तक सम्पूर्ण अवध प्रदेश के लिए माँ समान थी, वह वर्तमान में अपने जीवन की सुरक्षा के लिए पुकार लगाती प्रतीत होती है. एक रिपोर्ट के अनुसार लाख प्रयासों के बावजूद भी गोमती नदी के हालात सुधरे नही है.जमीनी स्तर पर की गई पड़ताल दर्शाती है कि तमाम सरकारी नीतियों के क्रियान्वन के बाद भी गोमती की हालत जस की तस है.
लखनऊ यूनिवर्सिटी के भू-गर्भीय विभाग द्वारा की गयी रिसर्च के अनुसार गोमती में प्रदुषण स्तर खतरनाक लेवल तक बढ़ चुका है. 2013 से 2017 तक की समयावधि में गोमती के प्रदुषण स्तर में 4 गुना अधिक की वृद्धि हुई है. शोध के मानकों की मानें तो वह दिन दूर नहीं, जब पवित्र गोमती के स्थान पर केवल एक गन्दा नाला नजर आयेगा. गोमती का जल इस स्तर पर प्रदूषित हो चुका है कि, इसे किसी भी प्रकार से प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है.
जियो इनवायरमेंटल असेसमेंट ऑफ इंडिया एंड इंटीग्रेटेड स्टडी के तहत लखनऊ यूनिवर्सिटी के भू-विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रो. अजय कुमार आर्या ने गोमती नदी के आस पास के पर्यावरण (वायु, जल एवं मृदा ) से सम्बन्धित रिसर्च की. शोध क्षेत्र में चन्द्रिका देवी मंदिर घाट, पक्का पुल, हनुमान सेतु एवं गोमती बैराज शामिल किये गये थे. इस शोध के आधार पर निम्नलिखित निष्कर्ष निकाला:-
1. नदी जल में ऑक्सीजन की मात्र बची ही नहीं है, जिससे नदी जल पोषण के वाहक तत्त्व कोनीज व निटसिया गायब हो चुके हैं.
2. नदी तट पर निर्माण कार्यों से नदी का सेल्फ क्लीनिंग सिस्टम पूरी तरह अवरुद्ध हो चूका है. पानी का प्रवाह रोक देने से उसमे नदी जल को साफ़ रखने वाले जीवाणु समाप्त हो चुके हैं.
3. नेचुरल फ्लो पर रोक लगा देने से नदी का पानी खतरनाक तरीके से प्रदूषित हो रहा है, जिसका असर नदी के आस पास की भूमि पर भी देखा जा रहा है.
4. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की असफलता से नदी नाले में परिवर्तित होने कली कगार पर है, और इससे वायु प्रदूषण निरंतर अबाध रूप से बढ़ रहा है.
5. पक्का पुल और हनुमान सेतु के मध्य सर्वाधिक प्रदूषण दर्ज किया गया, वही जहां पहले गोमती बैराज का जल साफ़ पाया गया था, इस रिसर्च के अनुसार वह भी अब प्रदूषण की भेंट चढ़ चुका है.
लखनऊ यूनिवर्सिटी द्वारा नदी जल की सुरक्षा से सम्बन्धित अनेक सुझाव भी दिए गये, जिसके अंतर्गत नदी तटीय इलाकों पर निर्माणकार्यों में रोक लगने, नदी का प्रवाह गतियमान बनाने और नदी के आस पास वृक्षारोपण कराने पर मुख्य जोर दिया गया. साथ ही यह भी कहा गया कि यदि गोमती के साथ और अधिक लापरवाही बरती गयी तो यह नदी केवल इतिहास बन कर रह जाएगी.