भारतवर्ष में यदि सरिताओं का सारतत्त्व जानना हो तो भोर होते ही किसी नदी तट का रुख कर लीजिए, जहां साधुजन एवं अन्य महात्मन लोग नदी वंदन के लिए तत्पर दिखाए दे जायेंगे. वैदिककालीन रीतियों से परिपूर्ण भारतीय परम्पराओं में नदियों को केवल नाम के लिए ही माता का दर्जा प्राप्त नहीं है, अपितु उनके अंचल में स्वयं को निमग्न कर सूर्य को अर्घ्य देने की परम्परा नदियों के ममत्त्व स्वरुप को ही इंगित करती है. अवध क्षेत्र के अदब और तहजीबों भरे इतिहास को अपनी गोद में समाहित कर गोमती नदी विराट संस्कृतियों की द्योतक बनकर आज भी अपनी उपयोगिता बनाए हुए है. नवाबी नगरी लखनऊ की निराली अदायगी से लबरेज गोमती सदियों से अपनी लहरों में धार्मिक सद्भावना, परंपरागत लोक इतिहास तथा सदियों की अध्यात्मिक उन्नतियों की अठखेलियों को दृष्टिगोचर करती प्रतीत होती है. ना केवल लखनऊ अपितु गोमती नदी क्षेत्र के सभी जिले मसलन; सीतापुर, शाहजहांपुर, पीलीभीत, लखमीरपुरखीरी, हरदोई, सुल्तानपुर, जौनपुर इत्यादि से भी गोमती का कोई न कोई ख़ास सांस्कृतिक नाता जुड़ा हुआ है. हिंदु-मुस्लिम धर्मों के अद्भुत एकीकरण का प्रतीक रही गोमती आज भले ही संघर्षशील स्थिति में है, परन्तु स्वतंत्रता से पूर्व तक यह सदानीरा के स्वरुप को लिए हुए थी. गोमती की कलकल करती लहरों की शरारतों और उसके जल को छुकर आती हवाओं की महक से प्रभावित होकर ही शायद मरहूम उर्दू शायरा साजिदा ज़ैदी ने अपनी नज़्म “गोमती के साहिल पर” के अंतर्गत लिखा..
गोमती के साहिल पर दूर दूर तक कोई हमसफर नहीं मिलता,राह-रू तो बहुत मिलते हैं,पर कोई रहबर नहीं मिलता.
प्राचीन काल से ही लखनऊ सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है, बहुत से नवाबों के संरक्षण में कईं मशहूर उर्दू शायरों ने पनाह पाई है. इसी कारण से बहुत से विदेशी पर्यटक भारत में भ्रमण के लिए आया करते थे. अवधी अदायगी की मिसाल गोमती नदी भी लखनऊ में सदियों से केवल पेयजल के ही स्त्रोत के रूप में नहीं देखी गयी, बल्कि इसके स्वच्छ और मीठे जल को लेकर एक उक्ति भी प्रसिद्ध थी कि यदि कोई व्यक्ति गोमती के जल की एक घूंट भी ग्रहण कर ले, तो वें भी महान शायरों मीर अनीस, मिर्जा सलामत अली दाबीर, वाजिद अली शाह अख्तर आदि के पदचिन्हों पर चलने योग्य हो जायेंगे. इस प्रकार गोमती का महत्त्व मध्य कालीन भारत में विचारणीय रहा है, उस समय भारत को यदि सोने की चिड़िया कहा जाता था तो निश्चित ही उसके मूल में वो उपजाऊ मैदान थे, जिन्हें नदियां अपने उर्वरक किनारों से सतत सींचा करती थी और सोने जैसी फसलें खेतों में लहलहाया करती थी. गोमती की दोआबी विशेषता उसे गंगा बेसिन की प्रमुख नदियों में से एक बनाती है, जिसके द्वारा लाखों लोगों को लाभ पहुंचता रहा है.
गोमती केवल अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के कारण लखनऊ में ही नहीं अपितु विभिन्न प्रवाह क्षेत्रों सीतापुर, हरदोई, पीलीभीत, शाहजहांपुर, सुल्तानपुर, जौनपुर आदि के लिए भी सांस्कृतिक एवं एतिहासिक रूप से बेहद महत्त्वपूर्ण है. जौनपुर में 1568 में गोमती पर मुनीम खान द्वारा निर्मित शाही पुल एवं गोमती के बाएँ किनारे पर स्थित शाही किला कथित मुग़ल सम्राट फिरोजशाह द्वारा बनाया गया नायाब नमूना है. हिन्दू- मुस्लिम सद्भावना का जो अनूठा स्वरुप उक्त काल में विद्यमान रहा, उसकी गंध आज भी इन स्मारकों के रूप में गोमती के चौतरफा बिखरी हुई है. गोमती के पास बैकुंठ धाम में शीश महल स्थित आसिफी कोठी में एक प्राचीन गुसलखाने के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां मरहूम नवाबों की लाशों को दफनाने से पूर्व स्नान कराया जाता था. वर्तमान में गोमती के किनारों पर कभी गुलज़ार रही नवाब आसिफ-उद-दौला के समय की बहुत सी इमारतें खंडरों में परिवर्तित भले ही हो गयी हो, परन्तु आज भी एतिहासिकता की एक अनूठी सी झलक गोमती के किनारों पर महसूस होती है.
गोमती अपने घाटों से जुडी परम्पराओं और अलग अलग धर्मों के कलेवर को एक मंच पर उजागर करने में भी अनिवार्य भूमिका निभाती आई है. संस्कृति और इतिहास से जुड़ी अनेक धार्मिक मान्यताओं को सार्थक करते गौघाट, कुड़ियाघाट, धौपाप घाट, मेहंदी घाट, हनुमान घाट, नैमिषारण्य, ईमलीघाट, ढकवा घाट इत्यादि गोमती के ऐसे कुछ रत्न है, जिन्होंने उसके स्वरुप को समय समय पर न केवल निखारा है, अपितु आज भी धार्मिक एकीकरण की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं. कुड़िया घाट के एक और जहां मंदिरों में प्रात: आरती की स्वरांजलि सुनाई पड़ती है, वहीं दूसरी ओर पाक कुरान की आयतें अजान के रूप में कानों में पड़कर अनोखी सांस्कृतिक छटा बिखेरती प्रतीत होती है. मेहंदी घाट पर हिन्दू धर्म के पर्याय एकादशी मेले, पूर्णिमा स्नान, छठ पूजा आदि के दर्शन होते हैं, तो वहीं बजरा के रूप में शिया मुस्लिम प्रतिवर्ष अपने शाही इमाम की सालगिरह का जश्न एक बड़ी सी नाव को सजाकर गोमती में उतारकर सामूहिक तौर पर मनाते है. कईं मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे तथा धार्मिक महत्त्व के आश्रम आज भी गोमती के इन घाटों की शोभा को बढाते है, साथ ही विभिन्न धर्मों का ये अद्भुत मिलन साबित करता है कि गोमती सांप्रदायिक एकजुटता की प्रतीक है.
आज देश में धर्मों, संस्कृति और परम्पराओं के नाम पर जहां केवल राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति भर की जा रही है, जहां कोई भी स्थान धार्मिक विद्वेष से अछुता नहीं दिखता, वहां गोमती सम नदियाँ ही हैं, जो धर्मों के मध्य अंतर नहीं समझती, जो तमाम संस्कृतियों को एक ही प्रकार से पोषित करती हैं तथा जो जन जन की परम्पराओं का आदर समान रूप से ही करती है. यदि गोमती कुछ जानती है तो वो है हर पंथ, हर तहजीब को स्वयं में समाहित करते हुए अबाध रूप से बहना और लोगों का मजहबी एकत्व का बोध करा के सामजिक जागरण का एक निर्मल उपदेश देते रहना.